क्या आप जानना नहीं चाहेंगे महादेव का ऐसा धाम जहां भोले नाथ के शीश पे बिराजमान है महत्मा बुद्ध
सावन के इस महीने में हम आपको हिमाचल में स्तिथ भोले नाथ के अलौकिक और अध्भुत मंदिरों के बारे में बतायंगे !
इसी सावन के पहले सोमवार को हम बताने जा रहे है शिव के त्रिलोकीनाथ मंदिर के बारे में यह मंदिर हिमाचल के लाहौल स्पिति से 37 किलोमीटर तुंदा गांव में स्तिथ है ! हिंदुओं के इस भक्ति केंद्र को शैव पीठ भी कहा जाता है। मंदिर शिखर शैली का है, जो पत्थरों से बना है। समीप ही सीढ़ियां उतरकर बौद्ध मंदिर है। छह भुजाओं वाले भगवान त्रिलोकी नाथ का मंदिर है। सिर पर बौद्ध की आकृति है। हिंदुओं और बौद्धों के लिए यह स्थान साझा आध्यात्मिक स्थल है।
लोगों की माने तो भगवान शिव यहां में भगति में लीन रहते थे तभी माँ पार्वती शिव से मिले से मिलने को बेचैन थी तब नारद जी के साथ मिलकर माँ पार्वती ने भोले नाथ को ढूंढ निकला तब शिव जी ने माँ पार्वती को आपने तीन विराट रूप दिखाए ! तभी से यह जगह त्रिलोकीनाथ के नाम से जानी जाने लगी !
एक और मान्यता के अनुसार
वर्षों पूर्व इस गांव के पास ही हिन्सा गांव था। जहां टिंडणू नामक गड़रिया रहता था। वह गांव वासियों की भेड़-बकरियां चराता था लेकिन उन बकरियों का दूध कोई अज्ञात शख्स दुह ले जाता था। जिसका न तो गांव वालों और न ही गड़रिए को कुछ पता चलता। जब काफी खोज खबर करने के बाद भी कुछ पता न चल सका तो गांव वालों ने टिंडणू पर झूठा आरोप लगा दिया कि वह ही बकरियों का दूध चुराता है। इस आरोप से टिंडणू बहुत आहत हुआ। अपने पर लगे झूठे आरोप को हटाने के लिए उसने असली चोर को ढूंढने का दृढ़ निश्चय किया। वह जी जान से असली चोर को खोजने लगा एक दिन उसने देखा एक स्थान पर जल के जलाशय से सात मानस आकृतियां निकलीं और उन्होंने बकरियों को दुहना आरंभ कर दिया। टिंडणू ने भागकर उन्हें पकड़ना चाहा लेकिन सफेद कपड़ों में एक ही व्यक्ति को पकड़ पाया। अन्य आकृतियां अदृश्य हो गई। उस व्यक्ति ने स्वयं को छुड़वाने का भरपूर प्रयास किया लेकिन छुड़ा नहीं पाया। फिर उसने टिंडणू से प्रार्थना की उसे छोड़ दे। टिंडणू को अपने पर लगे झूठे आरोप को हटाना था वह उसे गांव हिन्सा तक ले गया। वहां जाकर उसने गांव वालों को एकत्र कर चोर के विषय में बताया। गांव वालों ने जब उस सफेद कपड़ों वाले व्यक्ति को देखा तो उन्हें वो देव स्वरूप लगा। उन्होंने घी और दूध से उस व्यक्ति का पूजन आरंभ कर दिया। व्यक्ति ने गांव वालों को बताया कि वह त्रिलोकनाथ है और यहीं पर निवास करना चाहता है। उन्हें तुंदा गांव भा गया है। फिर उन्होंने टिंडणू से कहा कि वह उस स्थान पर भी पूजन करके आए जहां से वह उन्हें लेकर आया है। साथ ही कहा जब वापिस आए तो पीछे मुड़कर न देखे। टिंडणू उनके कहे अनुसार पूजन करने वापिस उसी स्थान पर गया तो वहां सात झरने बह रहे थे। वर्तमान में इन झरनों को सप्तधारा के नाम से जाना जाता है। टिंडणू जब पूजन करके अपने गांव लौटा तो त्रिलोकनाथ और टिंडणू दोनों पत्थर रूप में परिवर्तित हो गए। उसी दिन से तुंदा गांव का नाम त्रिलोकीनाथ पड़ा। यहां पर भव्य मंदिर बना।
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मंदिर की विशिष्टता इस तथ्य में निहित है कि यह पूरी दुनिया में एकमात्र मंदिर है जहां दोनों हिन्दू और बौद्ध एक ही देवता को अपना सम्मान देते हैं। मंदिर चंद्रमा भगा घाटी में पश्चिमी हिमालय के लिए स्थित है।
धन्यवाद
टीम- हिमाचलराइड
मो. 9555116454
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July 22, 2019
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